सवन का बहुत ही लुभावना होता है,
हर तरफ़
बादल भी गरज कर आवाज़ करने लगे |
बिजली भी चमक – चमक कर प्रकश करने लगी॥
बारिस भी बादल से इजाजत ले धरती की ओर चल पड़ी हैं ,
धरती भी बारिस को गले लगाने के लिए तरस रही है |
सावन का महीना बहुत ही सुहाना होता है,
कही धूप तो कही छाव होता है ।
बारिस कि बुदे भी धरती को शीतल कर रही है,
इन मन्द मन्द
एक साथ सब साथ में थे ,
बचपन अपना बहुत ही लुभावना था |
एक पल भी ऐसा था जब भीग रहे थे
सावन की बारिस में |
बोल बंम का नारा हर सावन में गुजेला ,
कवरियन के मेला देवघर में लागेला |
दर्द जब हदसे ज्यादा हुआ,
आँसु निकल रहे थे आँखो से ,
पर उस समय भीग रहा था बारिस में |
इस जिंदगी क्या पता ,
कब रास्ते में ही मोड़ ले ले |
आया है सावन का महीना ,
बरस रहा है बादल बहुत मग्न हो कर
तेरी यादो का मै सागार हु,
बरस रहा वह बाद्ल हू
सावन सुहाना होता है ,
कावरियों का मेला देवघर होता है
साथी सब मिलकर ,
एक साथ चलेला भोले की नगरी में ,
जिधर भी देखे , हर तरफ कवरीयन के
मेला है |
ये बारिस भी हमे कुछ बता ही जाती है ,
हल्का ठण्ड का ऐसा हमारे अंदर जगा ही जाते है ,
सावन में भीगने का मजा ही कुछ और ही होता है ,
जब बारिस भी हल्की हल्की होती है ,
पेड़ भी मौज से झुम रहे होते है ,
सावन बहुत ही लुभावना है ,
हर तरफ बारिस का नजारा है ,
हरी भरी धरती पर हरियाली भी लहराती है ,
इस सावन के महीने में भोले नाथ का मेला है,
बचपन एक अकेला था,
सावन का उस समय मेला था
मेरे भी अंदर चाह जगा ,
इस सावन के मेले में,
भोले नाथ की नगरी जाना है |
ये सावन का महीना है ,
खुबसुन्दर नज़ारे हर ओर नजर आता है |
सावन की बारिस में हम भीग रहे थे,
मेढक भी मजे उड़ा रहे ,
मोर झूम झूम कर नाच दिखा रहे थे ,
पर हम स्कूल ,से जब निकले तो बारिस भी ,
घोर बरस रही थी ,
और हम इस सावन की पहली बारिस में
भीगने के लिए रोड पर दौड़ पड़े ,
बारिस की एक एक बूँद जब तन पर गिरी,
हर अंग अंग भीगा बारिस में ,
और एहसास अंदर जगा तो ,
सावन भी पावन सा लगने लगा |
वह मुलाकात हम भूलेंगे नहीं ,
तुम भीग रही थी बारिस में ,
और हम झूम रहे थे उस बारिस में |
सावन का त्यौहार है आया ,
भोले के पास जाना है ,
और इस बार कावर के साथ Dj भी ले जाना है |
मुझे पता नहीं था,
की बारिस भी मजाक करेगी |
कही ज्यादा तो कही कम बरसेगी |
पेड़ भी कह रहे थे,
हम भी तड़प रहे थे उस गर्मी में,
जब बारिस न हो रही थी उस मई जून की गर्मी में ,
जैसे जैसे सावन का महीना आने लगा,
आसमान में बादल छाने लगा ,
पेड़ पंक्षी सब मगन हो रहे,
और मेढक मेघ को बुला रहा |
कहता मेढक बादल से , बारिस ला बारिस कर,
यह तपती धरती भी तड़प रही है तेरे खातिर,
यहां पर पंक्षी प्यासे – प्यासे तड़प रहे है बारिस आ ,
पेड़ की शाखाओ के पत्ते सुख सुख कर झड़ने लगे ,
प्यासी धरती की तड़प को देख ,
बदल तुम आ बारिस तो ला,
तेरे बगैर जीवन कहा ,
तेरे बगैर हरियाली है ,
जब -जब तुम आते हो ,
धरती भी हरियाली से भर जाती है |